हम हिंदू
हम हिंदू, हम हिंदू बिखरे हुए अनेक बिंदू किसकिसको हम पुजे खोखले बंधनो मे है सजे भव्यदिव्य कल्पित कथाए पुराणोकी दाहक व्यथाए स्वयंघोषित महानुभावोकी आस्थाए शांती से यह माथा कहाँ टिकाए भौचक्का हुई संस्कृती के पथ नकली इन्सानियत के गंदे हाथ छाएँ हुए जलसोके भटके रथ भक्त का श्रद्धा से टुटा हुआ साथ गरजो जयजयकार उन्हीका गाव जहाँ सम्राट इन्हीका दिखावा है धनवानो का खुला बाजार बिछा है धर्म का ऐक्य और नेकी का अद्भुत समीकरण अकेलापन का वास्तव भीषण झुठे जात-पात का अखंड ग्रहण जाए कहा कहा हम शरण चारो और फैलीहुई है अराजकता भटके आस्तित्व को हर घर ढुंढता कडी निगरानी मे ईश्वर सदैव रहता कमजोर हालात प्रभू के हवाले है करता --------------------------------------------- © भूषण वर्धेकर हैद्राबाद