सत्ता, पैसा और डर

एक मर्तबा सत्ता , पैसा और डर
आपस मे रहे थे लड़
यू हुआ की ऐसे,
सत्ता को लगा मै बलवान
मै अज़ीम, पैसा और डर मेरे गुलाम।

पैसा बौखलाहटकर बोला,
मै कैसा  गुलाम?
दुनिया मुझसे चलती है,
जो मै चाहू करवा सकता हूँ,
तो काहे का मै गुलाम, मै सिकंदर।

पैसा हँस पडा, कहने लगा
मै हूँ दुनिया मे इसलिए
सत्ता तू तो रौब जमाता है,
मेरा गुलाम तो डर है,
जो मै चाहू उससे करवाता हूँ।

सत्ता झिझककर बोला,
मै न होता तू कैसे बढ पाता,
तेरी आन-बान-शान मुझसे है,
मेरा जब तक है तख्त़,
तब तक तू है सख्त़।

डर बोला, बस करो
अगर मै न फैलता,
तुम होते कमज़ोर
तुम लोगों का पुख्ता साम्राज्य
मेरी वज़ह से है दमदार।

सत्ता और पैसा हँस पडे,
हम है तो तेरा आस्तित्व है,
हमसे ही तेरी गरिमा है
डर तू तो हम दोनों का गुलाम है
हमारे पाले में ही तेरी किंमत है।

डर हँसकर बोल पडा,
मेरे तो कई रुप है,
मै ही एकमात्र ज़रिया हूँ,
पैसों से सत्ता पाने का
मेरे सिवा तुम्हे कौन पुँछता?

दुनिया मे हूँ मै सर्वशक्तिमान,
मेरी वज़ह से सत्ता होती है क़ाबिज़
पैसा कमाने की मुझसे ही है आगाज़,
मै हूँ तो, सत्ता तेरा टिका है तख्त़,
मै न होता, पैसो का बढ़ना है मुश्क़िल

पैसा खो जाने का होता है ड़र
सत्ता न मिलने का होता है ड़र,
इस दुनिया मेरे बिना
न पैसो से सत्ता हासिल होगी
न सत्ता से पैसा बढा पाओगे।

इस विश्व की चराचर मे बसा हूँ मै,
मौत, इज्ज़त और धर्म के
आधारपर डटकर खडा हूँ मै,
जिल्ल़त की जिंदगी मे भरा हूँ मै,
बुलंद हौसलोंको कोंचता हूँ मै।

महज़ मेरे सिवा क़ाबू मे
न रख पाओगे दुनिया को
डर है विश्व का अंतिम सत्य
सत्ता और पैसा है ज़रिया
अब्तर अवाम पर राज करने का।

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भूषण वर्धेकर
२३ फरवरी २०१९
हैद्राबाद.
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